श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय में ज्ञानविज्ञान योग का वर्णन है। इस अध्याय में तीस श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण निरपेक्ष वास्तविकता और उसके भ्रामक ऊर्जा “माया” के बारे में अर्जुन को बताते हैं। इसमें आत्मा के देह त्यागने, मोक्ष प्राप्त करने तथा दूसरा शरीर धारण करने की प्रक्रिया का पूर्ण वर्णन किया गया है। आज के संदर्भ में अगर बात करें तो गीता मनुष्य को कर्म का महत्त्व समझाती है। गीता में श्रेष्ठ मानव जीवन का सार बताया गया है। सभी ग्रंथों में से श्रीमद्भगवद्गीता को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसमें व्यक्ति के जीवन का सार है और इसमें महाभारत काल से लेकर द्वापर में कृष्ण की सभी लीलाओं का वर्णन किया गया है। इसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी। भगवद्गीता पूर्णतः अर्जुन और उनके सारथी श्रीकृष्ण के बीच हुए संवाद पर आधारित पुस्तक है। गीता में ज्ञानयोग, कर्म योग, भक्ति योग, राजयोग, एकेश्वरवाद आदि की बहुत सुंदर ढंग से चर्चा की गई है। गीता मनुष्य को कर्म का महत्व समझाती है। गीता में श्रेष्ठ मानव जीवन का सार बताया गया है। इसमें 18 ऐसे अध्याय हैं जिनमें आपके जीवन से जुड़े हर सवाल का जवाब और आपकी हर समस्या का हल मिल सकता है। संभवतः संसार का दूसरा कोई भी ग्रंथ कर्म के शास्त्र का प्रतिपादन इस सुंदरता, इस सूक्ष्मता और निष्पक्षता से नहीं करता। इस दृष्टि से गीता अद्भुत मानवीय शास्त्र है। इसकी दृष्टि एकांगी नहीं, सर्वांगपूर्ण है। गीता में दर्शन का प्रतिपादन करते हुए भी जो साहित्य का आनंद है वह इसकी अतिरिक्त विशेषता है। तत्वज्ञान का सुसंस्कृत काव्यशैली के द्वारा वर्णन गीता का निजी सौरभ है जो किसी भी सहृदय को मुग्ध किए बिना नहीं रहता।
श्रीमद्भागवत गीता हमें जीवन में लक्ष्य की ओर निरन्तर आगे बढ़ने की ओर प्रेरणा देती है। श्रीमद्भागवत गीता में संपूर्ण जीवन का सार है। श्रीमद्भागवत गीता से हमें सकारात्मक ऊर्जा मिलती है जो हमें सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलने के साथ ही मानव कल्याण का संदेश देती है। आत्मा प्रत्येक जीव में विद्यमान होती है और भगवान कण कण में विराजमान है। हमें सच्चाई, आत्मविश्वास,जिज्ञासा और दृढ़ इच्छा शक्ति आगे बढ़ने में ऊर्जा प्रदान करती है। गीता हमें सत्वगुण और रजोगुण को विकसित करने में सहायक है और तमोगुण को नियंत्रित करती है।मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य त्रिगुणों से उबरना है। हम श्रीमद्भागवत गीता से सत्वगुण को प्राप्त कर सकते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता जिसे सम्मान से गीतोपनिषद् भी कहा जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय धर्म, दर्शन और अध्यात्म का सार है। जो वेदज्ञान नहीं पा सकते, दर्शन और उपनिषद् का स्वाध्याय नहीं कर सकते भगवद्गीता उनके लिए अतुल्य सम्बल है। जीवन के उस मोड़ पर जब व्यक्ति स्वयं को द्वन्द्वों तथा चुनौतियों से घिरा हुआ पाता है और कर्तव्य-अकर्तव्य के असमंजस में फंस जाता है_ भगवद्गीता उसका हाथ थामती है और मार्गदर्शन करती है। गीता नित्य और सनातन सन्देश है, जिसकी महत्ता इतिहास के तमाम झंझावातों से गुजरती हुई आज तक यथावत् है। जब-जब कोई कर्तव्यनिष्ठ साधक व्यक्तिगत, पारिवारिक, व्यावसायिक या ऐसे किसी विचारव्यूह में उलझता है तो उसे भी रास्ता इसी उपदेश से मिलता है।