स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे-डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र

भविष्यदृष्टा स्वामी विवेकानंद एक ऐसे युवा सन्यासी थे, जिन्होंने सारे संसार में भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की विजय पताका फहरा कर भारत को गौरवान्वित किया। उन्होंने भारतवासियों में राष्ट्रीय चेतना और स्वाभिमान जागृत करके परतंत्रता, अंधविश्वास और गरीबी के विरुद्ध एकजुट होने का आह्वान किया। स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। स्वामी विवेकानन्द सनातन सन्यास परंपरा के अद्‌भुत व्यक्तित्व थे। स्वामी विवेकानंद ने अपना आध्यात्मिक अभियान इन शब्दों से प्रारंभ किया था-राष्ट्र ही हमारा देवता है, यह सब मनुष्य हमारे देवता हैं। इनकी सेवा ही परमात्मा की पूजा है। हमारे प्रथम उपास्य हमारे देशवासी ही हैं। समस्त देशवासियों को दुर्बलताओं और दरिद्रता से मुक्ति दिलाकर उन्हें राष्ट्र व धर्म के कार्य में लगाने की परम आवश्यकता है। हमारे देश में अभी भी धर्म और आध्यात्मिकता जीवित है। यह ऐसे स्रोत हैं, जिन्हें अबाध गति से बढ़ते हुए समस्त विश्व देख रहा है, हमें पाश्चात्य एवं अन्य देशों को भी नव-जीवन तथा नवशक्ति प्रदान करनी होगी।


 


स्वामी विवेकानन्द केवल संत ही नहीं थे, एक महान् देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और मानव-प्रेमी भी थे। अमेरिका से लौटकर उन्होंने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा था, नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूंजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से निकल पडे झाडि़यों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से। इस प्रकार स्वामी विवेकानन्द भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के भी एक प्रमुख प्रेरणा-स्रोत बने। उनका विश्वास था कि पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है। यहीं बड़े-बड़े महात्माओं व ऋषियों का जन्म हुआ, यही संन्यास एवं त्याग की भूमि है तथा यहीं केवल यहीं आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य के लिए जीवन के सर्वोच्च आदर्श एवं मुक्ति का द्वार खुला हुआ है।


धर्म एवं तत्वज्ञान के समान भारतीय स्वतन्त्रता की प्रेरणा का भी उन्होंने नेतृत्व किया। स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे- मैं कोई तत्ववेत्ता नहीं हूँ। न तो संत या दार्शनिक ही हूँ। मैं तो गरीब हूँ और गरीबों का अनन्य भक्त हूँ। मैं तो सच्चा महात्मा उसे ही कहूँगा, जिसका हृदय गरीबों के लिये तड़पता हो।